निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय: अंतिम समय निकट था पलंग पर लाचार पड़ा था इतना सह चुका था इतना थक चुका था ना भावनाएं मचल रही थीं ना जीने की इच्छा बची थी...
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