निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: गंगा भी मचलती है: गंगा भी मचलती है उपेक्षा से उफनती है प्रदूषण से क्रोधित हो पूरे वेग से छलकती है गाँव शहर बस्ती जल मग्न करती हैं संसार को द...
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