Thursday, September 27, 2012

छोटा सा काँटा


चलते चलते
ध्यान रखते रखते भी
पैर में चुभ गया
छोटा सा काँटा
चलना रुका नहीं
पर दर्द से हाल बेहाल
करने लगा
 छोटा सा काँटा
बैठ गया पेड़ तले
किसी तरह निकल जाए
छोटा सा काँटा
पैर लहुलुहान हो गया
निकलने का नाम ना लिया
जिद पर अड़ गया
छोटा सा काँटा
थक हार कर लंगडाते हुए
फिर चल पडा सफ़र पर
समझ गया ध्यान
कितना भी रख लो
चुभ सकता है
ज़िन्दगी के सफ़र में
छोटा सा काँटा
रुला सकता है
बिगाड़ सकता है
ज़िन्दगी की चाल
करता सकता हैरान
छोटा सा काँटा
कब चुभेगा
पता नहीं चलता
कर देगा जीना दूभर
छोटा सा काँटा
ज़िन्दगी का सफ़र
 बड़ा अजीब होता है
बता गया
छोटा सा काँटा
755-51-27-09-2012
ज़िन्दगी,सफ़र,कष्ट,तकलीफ,

Sunday, September 23, 2012

ज़िन्दगी भर मुसर्रतों की तलाश में भटकता रहा


ज़िन्दगी भर
मुसर्रतों की तलाश में
भटकता रहा
मुसर्रतें तो मिली नहीं
ग़मों से
दोस्ती ज़रूर हो गयी
नफरत भरे
दिलों से मुलाक़ात हुयी
मोहब्बत की बात
करने वाले चेहरों की
हकीकत पता चल गयी
वफ़ा के नाम पर
बेवफाई मिल गयी
मुसर्रतें =खुशियाँ
754-50-23-09-2012
मोहब्बत,नफरत, ज़िन्दगी ,वफ़ा ,बेवफाई, मुसर्रतें ,खुशियाँ

गम इस कदर आदत बन गया



गम अब इस कदर
आदत बन गया 

एक दिन भी गुजर जाए
बिना उसके
मन नहीं लगता
शौक़ तो नहीं
ज़बरदस्ती पालूँ गम को
पर शायद
किस्मत में यही लिखा है
खुदा की रजा समझ
हँसते हँसते
गले लगाता हूँ
नहीं मिलता जिस दिन
किसी तरीके से ढूंढ 
लेता हूँ 
इतना ज़ज्ब हो चुका 
दिल में
बिना गम के अब रहा
नहीं जाता
753-49-23-09-2012
गम,आदत,दुःख,ज़ज्ब ,ज़िन्दगी

जब भी……..



जब भी
बार बार असफलता
हाथ लगती है
निराशा मन में घर
बनाने लगती
मन खिन्नता से भर जाता
समय ठहर जाता
चेहरे पर
अवसाद झलकने लगता
दिन ढलता नहीं
नींद बुलाने से भी आती नहीं
पथ कठिन
लक्ष्य दूर लगने लगता
आकान्शाएं मरने लगती
इरादे धूमिल होने लगते
कदम डगमगाने लगते
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
ऐसे में
स्वयं पर विश्वास
इश्वर में आस्था
धीरज और संयम रखना ही
एकमात्र सहारा होता
752-48-23-09-2012
असफलता,खिन्नता,अवसाद,आकान्शाएं
लक्ष्य,इरादे ,आस्था,इश्वर ,विश्वास,संयम ,धीरज

तुम्हारी ज़िन्दगी में,मैं कहाँ पर हूँ



तुम्हारी ज़िन्दगी में
मैं कहाँ पर हूँ
ना पहले कभी पूछा
ना आज पूछ रहा हूँ
मैं तो पहले भी
तुम्हारा दीवाना था
आज भी
तुम्हारा दीवाना हूँ
बस इतना सा फर्क
आया है
जब तक तुम्हें
कोई और नहीं मिला था
तुम मुस्काराकर
मेरी बातों को सुनती थी
अब मेरी तरफ
देखती तक नहीं हो
मुझे पता नहीं था
तुम वक़्त 
गुजार रही हो
751-47-23-09-2012
ज़िन्दगी,दीवाना ,दीवानापन 


फूल तो अब भी बहुत खिलते हैं



फूल तो अब भी
बहुत खिलते हैं
मेरे बगीचे में
पर क्या करूँ
अब कोई नहीं जिसे
भेज सकूं
अब मुन्तजिर हूँ
एक खुशनुमा चेहरे का
जिसे मेरे बगीचे के
फूलों की
महक सुंघा सकूं
तब तक
फूलों को यूँ ही खिलते
मुरझाते देखना होगा
इंतज़ार में
वक़्त गुजारना होगा
750-46-23-09-2012

ज़िन्दगी जी नहीं रहा हूँ,बस काट रहा हूँ



मेरा बड़ा मकान भी
अब बहुत छोटा लगने
लगा है
उनके जाने के बाद
अब एक कमरे में
सिमट कर रह गया हूँ
ज़िन्दगी जी नहीं रहा हूँ
बस काट रहा हूँ
ज़न्नत में उनसे मिलने की
ख्वाइश लिए
खुदा से दुआ कर रहा हूँ
749-45-23-09-2012

जब सूरज पहाड़ों के पीछे से झाँकने लगता है



जब सूरज पहाड़ों के
पीछे से झाँकने लगता है
लगता जैसे
उसका चमकता चेहरा
नज़र आ रहा है
वो भी इतनी दूर मुझसे
जितना आसमान में
सूरज मुझसे
मुझे अपनी ख़ूबसूरती की
रोशनी से
सरोबार तो करती
पर कभी
अपनी ख़ूबसूरती को
करीब से नहीं देखने देती
748-44-23-09-2012

टहलते टहलते



आज टहलते टहलते
एक पेड़ के नीचे बैठा
परिचित बूढा मिल गया
इस तरह अकेले चुपचाप
बैठे रहने का कारण पूछा
नम आँखों से कहने लगा
अब कोई चारा भी नहीं
ना कोई सुनता ,
ना समझता मुझको
कुछ कहने से पहले ही
चुप कर दिया जाता
निरंतर
प्रताड़ित होना पड़ता
मेरे लिए किसी के पास
समय नहीं
सब अपने काम में व्यस्त हैं
व्यथित हो
कहीं जाने का प्रयत्न करता
तो थोड़ी दूर चल कर ही
थक जाता
वैसे भी डूबते सूरज को
कौन नमस्कार करता है
अब बेबसी सहारा है
सुबह दो रोटी लेकर
घर से निकलता हूँ
पेड़ के नीचे दिन गुजारता हूँ
आने जाने वालों को देख कर
मन लगाता हूँ
कोई पास आ जाता तो
दो बात कर लेता हूँ
इसी तरह दिन गिनता
रहता हूँ
747-43-23-09-2012

उनकी बेरुखी के बाद


उनकी बेरुखी के बाद
हमें समझ आया
हम दिन में जुगनू
पकड़ने की कोशिश
कर रहे थे
जिसे जुगनू समझ रहे थे
वो जुगनू नहीं
शहद की मक्खी थी
उन्हें मोहब्बत तो
ज़ज्बातों से खेलने की थी
कोई पास आने की
कोशिश करता तो
काट लेती थी
746-42-23-09-2012

ग़मों के बोझ तले



ना कहीं खोता हूँ
ना कहीं छुपता हूँ
कभी अपने
ग़मों के बोझ तले
सब कुछ भूल जाता हूँ
कभी दूसरों को
पागल कहता हूँ
कभी खुद पागलपन
करता हूँ 
परेशानियों से
घबरा जाता हूँ
भावनाओं पर
नियंत्रण खोता हूँ 
मैं भी इंसान हूँ
भूल जाता हूँ
होश आने पर
शर्मिन्दा होता हूँ
माफ़ी माँगता हूँ
अनुभव से
सीख लेने का
पथ से नहीं
भटकने का
निश्चय करता हूँ
745-41-23-09-2012


Thursday, September 20, 2012

ऋण



लोगों को
गलतियाँ करते देखा
बाद में व्यथित होते
पछताते देखा
तो रहा नहीं गया
सोचा
क्यों ना जीवन का
अनुभव बाँट दूँ
अपने से छोटों को
जीवन का अर्थ समझा दूँ
आने वाले पचड़ों से
बचा दूँ
उनका जीवन सुखद
बना दूँ
मन से आगे बढ़ कर
लोगों को सीख देने का
समझाने का प्रयत्न किया
किसी को मेरा कृत्य
पसंद नहीं आया
उलटा मंतव्य पर
प्रश्न उठाया गया
शक से देखा गया
जानता नहीं
पहचानता नहीं फिर
बिना मांगे ही
क्यों निस्वार्थ मदद
कर रहा हूँ
कई बार खून का घूँट
पीना पडा
अपमान सहना पडा
सोचा बिना मांगे
सलाह देना उचित नहीं
तो क्यों ना आदत छोड़ दूँ
बार बार के अपमान से
मुक्त हो जाऊं
गहन सोच के बाद
निर्णय लिया
मैं ऐसा ही करता रहूँगा
मेरे अनुभव से
किसी एक का भी भला
कर पाया तो
मन को संतुष्टी मिलेगी
अनुभव बांटने के
उद्देश्य को पूरा मानूंगा
जो मैंने
अनुभवी लोगों से सीखा
उनका ऋण कुछ तो
कम कर पाऊंगा
744-40-20-09-2012

एक इच्छा और क्यों बढाऊँ



पाने से भरे
बादल के टुकड़े ने
मुझे आज फिर लुभाया
मुझे उकसाने लगा
उसे अपने मन के खेत में
बरसा दूं
सूखती फसल फिर से
लहलहाने लगेगी
मन में विचार आया
कहीं अधिक बरस गया तो
फसल पूरी तरह गल जायेगी
कुछ भी हाथ नहीं लगेगा
मन को समझाया
इस बार सावन नहीं बरसा
तो क्या हुआ
अगले बरस अवश्य
बरसेगा
मन को संतुष्ट किया
इश्वर की कृपा रहेगी तो
सब ठीक हो जाएगा
कितनी भी इच्छाएं रखूँ
सब तो
वैसे भी पूरी नहीं होती
एक इच्छा और क्यों बढाऊँ
जो दिया है ऊपर वाले ने
क्यों ना उसमें ही संतुष्ट रहूँ
743-39-20-09-2012

कहानियाँ किस्से सुनना अब भाता नहीं मुझे



कहानियाँ किस्से सुनना
अब भाता नहीं मुझे
खुद की कहानियों किस्से
सुनाने से ही  फुर्सत नहीं
कैसे किसी और की कहानियां सुनूं
मेरी कहानियों में भी सब कुछ है
हंसना रोना,प्यार नफरत
इर्ष्या,द्वेष
जब और कुछ बचा ही नहीं
नहीं कहानियाँ सुन कर क्या करूँ
कहीं ऐसा ना हो
कुछ ऐसा सुनने को मिल जाए
जो मेरी कहानियों में नहीं है
डर लगता रहेगा
कहीं मेरे साथ भी ना हो जाए
खुदा  से दुआ करता हूँ
नयी कहानियाँ मत बनाना
जो बन चुकी अब तक ज़िन्दगी में
वही बहुत हैं सुनाने के लिए
742-38-20-09-2012


कोई मिला नहीं जिससे मन पूरा मिला



ना जाने कितनी ऋतुएं
बदल गयी
कोई मिला नहीं जिससे
मन पूरा मिला
बहुत ढूंढा दुनिया में
किसी में कुछ बुराई
किसी में कुछ  कमी पायी
निरंतर
दूध का धुला ढूंढता रहा
फिर भी कोई मिला नहीं
झांका जब खुद के अन्दर
खुद को भी साफ़ नहीं पाया
छोड़ दिया मन मुताबिक़
मन ढूंढना
अब जो भी मिलता
खुले दिल से
उससे ही मन मिलाता हूँ
खुद के मन की गांठें
सुलझाने की कोशिश
करता हूँ
741-37-20-09-2012

Wednesday, September 19, 2012

क्यों लोग पल पल में अपनी फितरत बदलते



क्यों लोग पल पल में
अपनी फितरत बदलते
देख कर भी अनदेखा करते
आशंकाओं से घिरे रहते
मन में कुंठा
दिल में भ्रम पालते
क्यों इतने विचलित रहते
हंसना चाहते
पर मुस्कारा भी नहीं पाते
असहज ही जीते रहते
740-36-19-09-2012


रोशनी से भरे छोटे छोटे घरोंदे



ज़िन्दगी के हंसी
लम्हों की रोशनी से भरे
छोटे छोटे घरोंदे
मेरे यादों  में बसे हैं
ग़मों के बड़े बड़े मकान
मेरे दिल और ज़हन में
डेरा डाले हैं
जो मुझे सुकून से नहीं रहने देते
बार बार हैरान करते हैं
जब भी हैरानी सही नहीं जाती
मैं कमरे की खिड़की से
हरे भरे बगीचे को देखता हूँ
फूलों को निहारता हूँ
ज़िन्दगी के हसीं लम्हों को
याद करता हूँ
यादों में बसे रोशनी के घरोंदों से
रोशनी की किरणें
मेरे मन को रोशन करने लगती
मेरे बेचैनी कम होने लगती
हैरानी गुम हो जाती
मैं खुद को तरोताजा महसूस
करने लगता हूँ
फिर खुशी से काम में
लग जाता हूँ
739-35-19-09-2012

जब मन नहीं लगता



जब मन नहीं लगता
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
चाहे टी वी चलाओ
चाहे संगीत सुनो
हर पल भारी लगता
किसी से बात करने का
मन नहीं करता
ना नींद आती है
ना जागने का मन करता
समय काटे नहीं कटता
आँखें बार बार
घड़ी को देखती
लगता है
सुइयां सरक नहीं रही
कब बीतेंगे ये पल
चेहरे पर मायूसी
मन में बेचैनी बढ़ने लगती है
मन बार बार कहता
सब व्यर्थ है
ऐसा होता है जब मन
नहीं लगता
738-34-19-09-2012

बड़े बूढों ने कहा,ज्ञानियों ने समझाया



बड़े बूढों ने कहा
ज्ञानियों ने समझाया
शास्त्रों में पढ़ा
इश्वर की पूजा अर्चना
करनी चाहिए
नित्य मंदिर जाना चाहिए
पवित्र तीर्थस्थलों के दर्शन
करने चाहिए
नित्य इश्वर का नमन
करना चाहिए
साथ ही सबने
एक बात और समझायी थी
कर्म,व्यवहार,आचरण भी
जैसा इश्वर को पसंद हो
वैसा ही करना चाहिए
वर्षों से विचारों का मंथन
कर रहा हूँ
फिर भी समझ नहीं पाता हूँ
क्या इश्वर की पूजा अर्चना करूँ
तीर्थ स्थलों के दर्शन करूँ
पवित्र सरोवरों में स्नान करूँ
नित्य मंदिर जा कर
इश्वर को प्रसन्न करूँ
या कर्म,व्यवहार,आचरण पर
ध्यान दूं
अब तक झंझावत में फंसा हूँ
दोनों में से एक भी
मन से नहीं कर पा रहा हूँ
पता नहीं
इश्वर को कैसा लग रहा होगा
पर इतना अवश्य जानता हूँ
इश्वर अवश्य मेरी मनोदशा को
समझ रहा होगा
मुझे विश्वास है
मुझे सज़ा तो नहीं देगा
737-33-19-09-2012


चेहरे पर उम्र दिखने लगी



चेहरे पर
उम्र दिखने लगी
थकान भी बढ़ने लगी
कब पुत्र से
पिता, फिर दादा बना
पता ही नहीं चला
कुछ पल जीवन में आये भी
जब रास्ता दुर्गम लगा
सब्र और संयम से
वो भी पार किया
अब उम्र के जिस मोड़ पर
खडा हूँ
एक बड़ा प्रश्न मुंह खोले
सामने खडा है
मुझ से कह रहा है
अब ताकत कम हो गयी
उम्र बढ़ गयी
कैसे लड़ोगे कठनाइयों से
मैं अवाक हो जाता हूँ
घबराने लगता हूँ
कुछ पल सोचता हूँ
फिर स्वयं उत्तर देता हूँ
मेरे जीवन के पेड़ के
पत्ते अवश्य पीले हो गए
पर गिरे नहीं हैं
जब तक पेड़ में जान है
पहले जैसे ही लहराते रहेंगे
हवा के तेज़ झोंके सहते रहेंगे
पर आसानी से गिरेंगे नहीं
सब्र और हिम्मत से
लड़ते रहेंगे
736-32-19-09-2012

छोटी सी कामयाबी पर



हमारी
छोटी सी कामयाबी पर
इतनी पीठ थपथपाई गयी
पीठ दर्द करने लगी
कामयाबी सर पर
चढ़ गयी
अपने आप को बड़े भारी
हूनर मंद समझने लगे
थोड़ी सी कामयाबी में
मदहोश हो गए
भूल गए
आगे बढ़ने के लिए
लक्ष्य को
याद रखना होता
मेह्नत से मुंह ना
मोड़ना होता
नतीजा वही हुआ
जो होना था
होश में आये तो देखा
हम चौराहे पर खड़े थे
लोग आगे बढ़ गए
हम वहीं खड़े रह गए
735-31-19-09-12

मैं भीड़ से अलग क्यों रहता हूँ



लोग इस बात से
नाराज़ रहते हैं
मैं भीड़ से अलग
क्यों रहता हूँ
क्यों भीड़ में शामिल
नहीं होता हूँ
कैसे उन्हें बताऊँ
कैसे उनका दिल 
दुखाऊँ
भीड़ में शामिल लोग ही
मुझे मजबूर करते हैं
भीड़ से अलग रहना
सिखाते हैं
19-09-2012
734-30-09-12