Tuesday, June 26, 2012

किसी ने कहा अन्धेरा हो गया



किसी ने कहा
अन्धेरा हो गया
मैंने कहा
अँधेरा नहीं हुआ
उजाला चला गया
कोई बोला सर्दी आ गयी
मैं बोला गर्मी चली गयी
फिर किसी ने कहा
इश्वर होता है
मैंने पूछा
क्या तुम ने देखा है
उत्तर मिला
मुझे इश्वर में आस्था है
मैंने कहा
जैसा मानोगे ,
जैसा सोचोगे
वैसा ही देखोगे
क्यों नहीं
घ्रणा में प्यार देखो
इर्ष्या में
सदभावना देखो
इर्ष्या करोगे इर्ष्या
पाओगे,
घ्रणा करोगे घ्रणा
पाओगे
विश्वास करोगे विश्वास
पाओगे
अच्छा सोचोगे अच्छा
करोगे
खुशी से जीवन
जियोगे
26-06-2012
600-50-06-12

मेरी आत्मा



शरीर की
कितनी पडतों के
नीचे दबी है मेरी आत्मा
मुझे पता नहीं
शरीर में कहाँ छुपी है
मेरी आत्मा
मुझे पता नहीं
इतना अवश्य पता है
निरंतर कुलबुलाती है
मेरी आत्मा
जब देखती है
बच्चों,स्त्रियों.बढे,बूढों
निरीह जानवरों पर
अत्याचार
रोती है मेरी आत्मा
जब देखती है
दोगलापन,असत्य
अहम्,अहंकार से
भरे लोगों को
कुछ कह तो नहीं पाती
मेरी आत्मा
पर चित्कार अवश्य
करती है
चिल्ला कर कहती है
तुम कभी ऐसा मत करना
जिस दिन
तुमने कुछ ऐसा सोचा भी
मैं तुम्हें
छोड़ कर चली जाऊंगी
फिर तुम्हें भी अमानुष
बन कर जीना पडेगा
जीवन में
कभी चैन नहीं मिलेगा
26-06-2012
598-48-06-12


Monday, June 25, 2012

अब तक पता नहीं था


अब तक पता नहीं था
चुप रहना
कितना अच्छा होता है
जुबां को
आराम देना से कितना
फायदा होता है
अब चुप रहता हूँ
खुशी से जीता हूँ
ना कोई नाराज़ होता है
ना जवाब में
अपशब्द कहता है
ना रिश्तों में दरार आती
ना मनों में फर्क आता है
जब भी मिलता है
गले लग कर मिलता है
हर शख्श मुझे
अब दोस्त समझता है
25-06-2012
598-48-06-12


क्यों कहते,तुम अकेले हो



क्यों कहते,तुम अकेले हो
किसी के साथ कोई नहीं होता
तुम कहते तुम अकेले हो
हर तरह के
इंसान मिलते जीवन में
जो हँसाते भी हैं
रुलाते भी हैं
दर्द कम भी करते हैं
बढाते भी हैं
ये तुम पर निर्भर है
तुम किस की बातों से
प्रभावित होते हो
किसी को ढूँढने से पहले
खुद को सु द्र ढ बनाओ
खुद पर विश्वास रखो
फिर कोई मिले ना मिले
खुद को अकेला नहीं पाओगे
खुद रास्ता बनाओगे
न विफलता का मुंह देखोगे
ना कभी किसी से कहोगे
तुम अकेले हो
25-06-2012
597-47-06-12

ख्यालों की दुनिया में



सोना चाहता था
सुन्दर सपने देखना
चाहता था
उनके पैगाम की उम्मीद में
जागना भी चाहता था
रात बीत गयी
ना उनका पैगाम आया
ना सुन्दर सपने
देख सका
रोज़ की तरह उम्मीद में
वक़्त काटता रहा
ख्यालों की दुनिया में
खोता रहा
25-06-2012
596-46-06-12

पहली बारिश के बाद


पहली बारिश के बाद
मन डोलने लगा
उनसे मिलने को
तरसने लगा
हम बड़ी शिद्दत से
उनके घर का दरवाज़ा
खटखटाते रहे
उनसे मिलने को
तरसते रहे
वो बेखबर
गहरी नींद में सोते रहे
सपनों की
दुनिया में गोते
लगाते रहे
25-06-2012
595-45-06-12

आज फिर फिसल गया,गहरी चोट खा गया



आज फिर फिसल गया
गहरी चोट खा गया
जिसने पकड़ा था हाथ
उसने ही छुडा लिया
मांझी ने ही किश्ती को
डूबा दिया
ना सुकून मिला
ना साहिल मिला
कातिल का असली
चेहरा दिख गया 
वफ़ा को बेवफाई में
बदलते देख लिया
आज फिर फिसल गया
गहरी चोट खा गया
25-06-2012
594-44-06-12

कौन कहता है?, आग पानी का साथ नहीं हो सकता


कौन कहता है ?
आग पानी का साथ
नहीं हो सकता
मैं सबूत हूँ
नफरत भरे रिश्तों की
आग में भी जीवित रहा
समस्याओं की कसौटी पर
खरा उतरता रहा
स्वाभिमान की आंच में
झुलसा अवश्य
पर सहन शीलता से
उस पर पार पाता रहा
नफरत के गर्म सूरज पर
सब्र की ठंडक से
विजय पाता रहा
भावनाओं की आग को
भभकने नहीं दिया
हिम्मत के पानी से
उसे बुझाता रहा
कौन कहता है ?
आग पानी का साथ
नहीं हो सकता
25-06-2012
593-43-06-12

कितनी नावें,कितने मांझी बदलोगे


कितनी नावें

कितने मांझी बदलोगे
कितने दोस्त
कितने साथी बदलोगे
अब अपनी
इस फितरत को
विराम
मचलते मन को
विश्राम दे दो
ज़िन्दगी की डगमगाती
किश्ती को संभाल लो
खुदा के वास्ते
जान लो
एक ही साथ काफी
होता है
ज़िन्दगी के सफ़र में
अब किसी पर तो
यकीन कर लो
ज़िन्दगी की पतवार
उसके हाथ में दे दो
हँसते गाते सफ़र
पूरा कर लो
25-06-2012
592-42-06-12

वटवृक्ष के सानिध्य में



आज फिर
व्यथित मन से
वटवृक्ष के नीचे आ
बैठा हूँ
सदा की तरह
सारी व्यथा रो रो कर
निकालूँगा
विशाल ह्रदय वाले
वटवृक्ष ने
सदा मौन रह कर
मेरी हर व्यथा को
धैर्य से सुना है
उसका मौन मेरे लिए
सदा ही
होंसला बढाने वाला
रहा है
मुझे विश्वास है
आज भी वही होगा
मेरे ह्रदय और मन को
चैन मिलेगा
वटवृक्ष अपना बड़प्पन
रखेगा
अपनी छाया में मुझे
हारने नहीं देगा
आज भी 
पहले से अधिक होंसले से
इसके सानिध्य से
उठ कर जाऊंगा
25-06-2012
591-41-06-12

इच्छाओं की कस्तूरी



इच्छाओं की कस्तूरी
मनमोहिनी सुगंध से
मुझे निरंतर लुभाती
संतुष्टी के पथ से
डिगाने का
निष्फल प्रयत्न करती
मेरे संयम की बार बार
परीक्षा लेती
कभी मन करता
सब सूंघते कस्तूरी को
मैं क्यों पीछे रहूँ ?
प्रश्न मन का द्वार
खटखटाता
क्यों फिर भी कोई खुश नहीं?
उत्तर तो नहीं मिलता
स्वयं ही तय कर लेता हूँ
जब किसी ने भी
कामनाओं के संसार में
चैन नहीं पाया
सब इच्छाओं की कस्तूरी
सूंघ कर भी बेचैन हैं
मैं क्यों अपनी बेचैनी बढाऊँ?
जैसे हूँ वैसे ही खुश रहूँ
अधिक की कामना करे बिना
कर्म करता रहूँ
जो दिया इश्वर ने उसे
खुशी से स्वीकार करूँ
उसी ने दिया सब कुछ ,
वो चाहेगा तो
बिना मांगे ही दे देगा
25-06-2012
590-40-06-12

हास्य कविता -तुम कर सकते हो ?



फिरंगी
हँसमुखजी से बहस
करने लगा
पश्चिम की तारीफ़ में
कसीदे पढने लगा
हमने टीवी बनाया
दूर की घटना को
नज़दीक से देख सकते हैं
हमने फ़ोन बनाया
हज़ार मील दूर बैठे
व्यक्ति से
बात कर सकते हैं
बताओ हिन्दुस्तानियों ने
अब तक क्या करा?
हँसमुखजी बोले
अब इतनी भी डींग
मत मारो
हमारे यहाँ भी
ऐसे ऐसे महारथी हैं
जो बिना काम करे
हज़ारों मील दूर
स्विस बैंक में पैसा ज़मा
कर सकते हैं
तुम कर सकते हो ?
25-06-2012
589-39-06-12

पुराने हो गए हैं,तो क्या बदल दोगे



पुराने हो गए हैं
तो क्या बदल दोगे
कूडा समझ कर फैंक दोगे
ये भी तो सोच लो
नया कहाँ से लाओगे
तुम कह दोगे नए की
ज़रुरत ही नहीं
कुछ करने से पहले खुद का
भविष्य भी जान लो
खुद से ही प्रश्न पूछ लो
एक दिन तुम भी पुराने
पड़ जाओगे
क्या कूड़े सा फिकने को
खुद के बदले जाने के लिए
तैयार हो पाओगे
25-06-2012
588-38-06-12

Thursday, June 7, 2012

उम्मीद में



घर की मुंडेर से
चिड़िया उड़ कर
मेरे घर के
बगीचे में आयी
 यूँ लगा जैसे
उनका पैगाम लाई है
मैं उदास चेहरे से
उसके पास गया
तो फुर्र से उड़ गयी
मुझे यकीन हो गया 
मेरा हाल जानने
आयी थी
तब से अब तक
चिड़िया के आने की
उम्मीद में
बगीचे में ही बैठा हूँ
कभी तो आकर
उनका हाल
बतायेगी
मिलने का पैगाम भी
साथ लायेगी
06-06-2012
578-28-06-12

आज से पहले


आज से पहले
रात की रानी
कभी इतना
नहीं महकी थी
आज
क्या ख़ास हुआ
जानने के लिए
जब किसी से पूछा
तो मालूम हुआ
वो कुछ
वक़्त के लिए
उसके पास
रुकी थी
06-06-2012
577-27-06-12

उन्होंने मुझे पुकारा




उन्होंने मुझे पुकारा
मैंने भी मुस्कराकर
उनका अभिवादन किया
पहले मिला नहीं आपसे
फिर भी बताइये
क्या काम है
तपाक से कह दिया
वो पहले तो झेंपे
फिर मुस्काराकर बोले
क्षमा करें गलतफहमी में
किसी और की जगह
आपको पुकार लिया
फिर अपना परिचय दिया
पड़ोस की कॉलोनी में
रहते थे
मेरे समकक्ष सरकारी
नौकर थे
आज के समय में
जब जानने वालों से
रिश्ता निभाना कठिन होता
गलतफहमी ने
हमारे बीच मित्रता का
मधुर रिश्ता बना दिया
06-06-2012
576-26-06-12