Monday, April 30, 2012

ख्यालों में


तुमसे बात करता हूँ
जब भी कोई आहट होती
ख्यालों की लड़ी टूटती
मुझे लगता
तुम हकीकत में आ गयी हो
दरवाज़े पर दस्तक
दे रही हो
मैं दौड़ कर दरवाज़ा
खोलता हूँ
तो सूनी सड़क  के सिवाय
कुछ नहीं दिखता
लौट कर फिर तुम से
गुफ्तगू करने की उम्मीद में
ख्यालों की दुनिया में
लौटता हूँ
तुम्हारे इंतज़ार में
ख्यालों से इस हद तक
लगाव हो चुका है
अब अगर हकीकत में
आ भी जाओ तो
तुमसे कह दूंगा
मिलना है तो ख्यालों में
ही मिलो मुझसे
27-04-2012
480-61-04-12

No comments: