Thursday, September 29, 2011

कुछ और चाहिए

भाग्यवान हूँ
इश्वर बहुत कृपालु
मुझ पर
ढेर सारे  मित्र मेरे
साथ हँसते साथ गाते
सुख दुःख में साथ
निभाते
एक आवाज़ पर दौड़े
चले आते
फिर भी कुछ खालीपन
लगता
निरंतर मन मष्तिष्क को
उद्वेलित करता
कानों में सदा
अधूरेपन का स्वर
गूंजता
ह्रदय में सूनापन
अखरता
कुछ और चाहिए
मुझको ?
ढूंढ रहा हूँ उसको
जो सत्य से अवगत
करा दे
कुंठाओं को विराम दे दे
मन को चैन ,
      ह्रदय को तृप्ति दे दे       
29-09-2011
1585-156-,09-11

प्रेम की अनुभूती

आज
उनसे मिलना हुआ
प्रेम  राग का
जन्म हुआ
उनके सानिध्य के लिए
मन में तड़पने लगा 
ह्रदय  के सारे साज़
एक स्वर में बजने लगे
मन में नयी धुनें
जन्म लेने लगी
आँखें चमकने लगी
होठों से खुशी के गीत
निर्बाध 
प्रस्फुटित होने लगे
निरंतर नीरस मन में
सपने हिलोरें लगे
प्रेम की अनुभूती से 
धरती पर स्वर्ग के
दर्शन होने लगे    
29-09-2011
1584-155-,09-11

क्यों दोष देते हो?

क्यों दोष देते हो?
मुझ पर ऊंगली उठाते हो
क्यों सत्य से भागते हो ?
क्या तुम खुद वह
नहीं करते?
जो मैं करता हूँ
कौन है?जिसे कोई दूसरा
नहीं भाता ?
निरंतर उसके मन को
नहीं लुभाता
जिसे जानते नहीं
मन उस से
मिलने का नहीं करता
क्यों हर चाहत में स्वार्थ
खोजते हो ?
क्या सम्बन्ध निश्छल
नहीं हो सकते ?
फिर क्यों सदा ऐसा ही
सोचते हो ?
अपने गिरेबान में झांको
क्या मन तुम्हारा
स्वच्छ है?
पहले स्वयं के सोच को
स्वच्छ करो
फिर किसी और से कहो
क्यों किसी को
चाहते हो?
उस से मिलने की
इच्छा रखते हो
 29-09-2011
1583-154-,09-11

समय नहीं मिला

बहुत आसानी से
कह दिया
समय नहीं मिला
बहुत कठिन होता
कहना
करने की इच्छा नहीं
ह्रदय को भाया नहीं
मन निश्चित ना
कर सका
निरंतर वो सब
करता रहा
जो मन को भाता रहा
अनावश्यक कार्यों में
लिप्त होता रहा
समय व्यर्थ करता रहा
सदा झूठ बोलता रहा
स्वयं को
खुश करता रहा
झूठ से बच सकता था
फिर भी 
सदा  कहता रहा
समय नहीं मिला
29-09-2011
1582-153-,09-11

Wednesday, September 28, 2011

हास्य कविता-हँसमुखजी को गंजा कर दिया

तीस की
उम्र में हँसमुखजी के
बाल सफ़ेद हो गए
एक दिन अपने दोस्त के
घर पहुँच गए
दोस्त की बहन ने
बहुत दिन बाद
उन्हें देखा तो
पहचाना नहीं
देखते ही कहा दादाजी
भैया घर के बाहर गए हैं
हँसमुखजी शरमा गए
फ़ौरन सैलून जा कर
बाल काले करवा लिए
तीन चार दिन बाद
फिर दोस्त के घर गए
दोस्त की
बहन ने दरवाज़ा खोला
चिल्ला कर भाई को
आवाज़ लगायी भैया ,
परसों दादाजी मिलने आये थे
आज पोता मिलने आया है
हँसमुखजी मुंह छिपा कर
दोस्त के आने से पहले ही
फिर सैलून चल दिए
सौन्दर्य विशेषग्य को
अपना दुःख बताया
उसने आधे बाल काले
आधे सफ़ेद कर दिए
हफ्ते भर बाद
हिम्मत कर,डरते डरते ,
भगवान् से प्रार्थना करते हुए
आज बहन नहीं मिले
तडके दोस्त के घर पहुँच गए
बहन स्कूल जाने के लिए
दरवाज़े पर खड़ी मिली
उनको देखते ही
फिर जोर से आवाज़ लगायी
भैया पहले दादाजी आये थे
फिर पोता आया था
आज बेटा आया है
हँसमुखजी ने सर पीट लिया
सैलून के बाहर जाकर बैठ गए
सैलून खुलते ही मालिक से बोले
मुझे बचालो
कुछ ऐसा करो दोस्त की बहन
मुझे हँसमुखजी ही समझे ,
दादा बेटे पोते से मुक्ती दिला दो
मालिक ने कहा आज
पक्का इंतजाम कर देता हूँ
कह कर हँसमुखजी को
गंजा कर दिया
पांच दिन बाद हँसमुखजी
फिर दोस्त के घर पहुंचे
आज बहन नज़र नहीं आयी
,चेहरे पर मुस्कान आयी,
फ़ौरन घंटी बजायी
तो फिर बहन बाहर आयी
आते ही घबराहट में
जोर से चिल्लायी
भैया दादाजी,
बेटा और पोता मर गए
रोती हुयी सूरत लिए उनका
कोई रिश्तेदार आया है
आज जाने नहीं दूंगी
,निरंतर खानदान का
कोई ना कोई आदमी
घर आता है,
आपके आने से पहले ही
भाग जाता है
घर पहुँचते ही मर जाता है
फिर लौट कर
खानदान का कोई
दूसरा आदमी आता है
अब खानदान के किसी
आदमी को
आपसे मिलने से पहले
मरने नहीं दूंगी
यह कहते हुए
उसने हँसमुखजी को
क़स कर पकड़ लिया
लाख कोशिशों के बाद भी
भागने नहीं दिया
29-09-2011
1581-152-,09-11

ना कोई सूरत भाती,ना कोई मुस्कान लुभाती

ना कोई सूरत
भाती
ना कोई मुस्कान
लुभाती
दिल में दहशत
मन में शक पैदा
करती
निरंतर लुटता रहा
बार बार सहता रहा
अब हिम्मत नहीं
करती
दिल को सुकून दे सके 
किश्ती को किनारे
पहुंचा सके
मांझी की
तलाश फिर भी
बंद न होती
 28-09-2011 
1580-151-,09-11

हास्य कविता-हँसमुखजी के गाँव में नेताजी पधारे

हँसमुखजी के
गाँव में नेताजी पधारे
साथ में थे लाव लश्कर सारे
ऊपर से नीचे तक
नेताजी थे गोल
दिखते थे तरबूज से  बेडोल
हँसमुखजी ने पहचान लिया
नेता नहीं था ये भोलू चोर 
उनसे से रहा ना गया
निकल पड़े मुंह से कुछ बोल
तुम नेता नहीं ,हो एक ढोल 
नेताजी भी अकड़ कर बोले
क्यों बोल रहे हो ऊंचे  बोल
चुप हो जाओ नहीं तो
खुल जायेगी तुम्हारी भी पोल
हँसमुख जी बिफर कर बोले
तुम क्या खोलोगे मेरी पोल
मैं बोलूंगा सच्चे बोल
हम तुम थे साथ जेल में बंद  
वहां भी मचाई थी तुमने पोल
जेलर की जेब काट कर
मचा दिया था शोर
मच गयी थी जेल में रेलम पेल 
जेल तोड़ कर भाग गए थे
नाम बदल कर,चुनाव लड़े
चोर से बन गए नेता अनमोल
बहुत दिन बाद पकड़ गए हो 
अब जाओगे फिर से जेल
जब डंडे पड़ेंगे होलसेल 
तरबूज से पिचक कर
हो जाओगे गोल बेर
संगीत बिना भी निरंतर
करोगे रौक एंड रोल 
28-09-2011
1578-149-,09-11

उन्हें शौक-ऐ-मोहब्बत भी शौक-ऐ-इबादत भी

उन्हें
शौक-ऐ-मोहब्बत भी
शौक-ऐ-इबादत भी
निरंतर
दुआ खुदा से करते
हसरतें उनकी पूरी
कर दे
ख़्वाबों को हकीकत
बना दे 
आशिकों को इंतज़ार
कराते
जी भर के रुलाते
लम्हा लम्हा तड़पाते
इस ख्याल से जीते रहते 
खुदा तो
ज़न्नत में रहता
इल्तजा सुनता होगा
आँख से अंधा होगा
उनकी हरकतों को
देखता ना  होगा
28-09-2011
1579-150-,09-11

बेटी



बेटी

ह्रदय का अंग होती

उसकी पीड़ा सही

ना जाती

व्यथा उसकी

निरंतर रुलाती

ह्रदय को तडपाती

एक पल भी चैन नहीं

लेने देती

मन सदा

उसकी कुशल क्षेम चाहता

उसके प्यार में  डूबा

रहता

बेटी का जन्म

पिता का सबसे

महत्वपूर्ण सृजन होता

प्रेम निश्छल,निस्वार्थ होता

उसकी खुशी ह्रदय की

सबसे बड़ी खुशी होती

बेटी ,पिता के जीवन में

खिलती धूप सी होती

उसकी कमी

अन्धकार से कम

ना होती

बेटी  पिता को

परमात्मा की भेंट होती

उसके नाम से ही आँखें

नम होती 

28-09-2011
 1577-148-,09-11


मुझे मेरे लिए कुछ नहीं चाहिए

मुझे मेरे लिए
कुछ नहीं चाहिए
जो भी चाहिए
तुम्हारे लिए चाहिए
तुम्हारे होठों पर हंसी
चाहिए
तुम्हारे दिल में खुशी
चाहिए
हिम्मत तुम्हारी लौटनी
चाहिए
निरंतर जीवन में गति
चाहिए
कभी थके नहीं ऐसी
शक्ति चाहिए
चैन की नींद चाहिए
परमात्मा से प्रार्थना मेरी
तुम्हें कभी रोता ना देखूँ
मुझे ऐसी किस्मत
चाहिए
28-09-2011
1576-147-,09-11
(एक पिता की प्रार्थना,अपनी बिटिया के लिए )

Tuesday, September 27, 2011

नेपथ्य में …..

नेपथ्य में
चलता है सोच
आती हैं यादें
उमड़ता है प्यार
तंग करती है व्यथा
होती है चिंता
मन में आशंकाएं ,
आकांशाएं 
निरंतर जन्म लेती
फिर लोप हो जाती 
सुख, दुःख से भरी
भावनाएं
मन को घेरे रहती
सामने लगा होता है
मुखौटा
होड़ में स्वयं को
सब से अच्छा बताता
खुशी से भरी  मुस्कान
मन के दुराव को
छुपाती
प्रसाधनों से सजाया
कृत्रिम सौन्दर्य
वस्त्रों की चमक दमक
शरीर पर आभूषण
सम्पन्नता का दिखावा
प्यार भरे बनावटी शब्द
मुंह से निकलते
निश्छल सौम्य चेहरा
मन,ह्रदय और शरीर की
कुरूपता को छुपाता
नेपथ्य को
आगे नहीं आने देता
मन को झूंठी संतुष्टी
प्रदान करता
नेपथ्य में मन
रोता रहता
ना संतुष्ट रहता
ना संतुष्टी के
पथ पर चलता
मुखौटा स्वभाव का 
अटूट अंग

सब को भाता
जीवन के
अंतिम क्षण तक
साथ निभाता
28-09-2011
1575-146-09-11

भीड़ से घिरा हूँ

भीड़ से घिरा हूँ
फिर भी अकेला हूँ 
साथ में हंसता हूँ 
अकेले में रोता हूँ
चुपचाप सहता हूँ
निरंतर खुशी का 
दिखावा करता हूँ 
वक़्त से लड़ता हूँ
ज़ुबां चुप रखता हूँ
लिख कर कहता हूँ
मन में खुश होता हूँ
कल के लिए खुद को
तैयार करता हूँ
सुबह फिर भीड़ से
घिरा होता हूँ 
27-09-2011
1574-1405-,09-11

उम्र ढलती है ज़ज्बा नहीं

उम्र ढलती है 
ज़ज्बा नहीं
हंसने वालों का 
हंसना
कभी रुकता नहीं
लाख काटों से पाला पढ़े
निरंतर चलना कभी
थमता नहीं
जिन के दिल में 
जलती है
मोहब्बत की शमा
दिल लगाना कभी
ख़त्म होता नहीं
जो भी मिले प्यार से
दिल का दरवाज़ा
 
उनके लिए कभी बंद
होता नहीं
27-09-2011
1573-1404-,09-11

हमने सही है तकलीफें दिल के खातिर कई

हमने सही है
तकलीफें
दिल के खातिर कई
खामोशी में
बिताए दिन कई
ग़मज़दा
लगी चांदनी रातें
रो रो कर काटी
रातें कई
लुटी हैं हसरतें
बार बार
ना बना हमसफ़र
अब तक कोई
फाड़ दिए ख़त
बार बार कई
निरंतर बेवफायी
 अब आदत हो गयी
27-09-2011
1572-1403-,09-11

मुझे पता है वो छिप कर देख रहे निरंतर

मुझे पता है
वो छिप कर देख रहे
निरंतर
मेरी हरकतों पर
नज़र रख रहे
दिल-ऐ-बेकाबू को
काबू में कर रहे
मन तो
उनका भी होता
दो बात कर लें
हम से
पर घबरा के रह
जाते
निरंतर कदम आगे
बढ़ा कर पीछे
हटते
हम भी क्या करें ?
कैसे समझायें उन्हें ?
क्यों यकीन
नहीं उन्हें खुदा पर ?
क्यूं शक
रखते हर इंसान पर ?
जब तक
चाहे इम्तहान ले लें
यकीन
अपना पक्का कर लें
पर खुद गर्ज़ ना
समझें हम को
27-09-2011
1571-1402-,09-11

कोई और भी है

ये क्या कम है
आपने नज़रों से
नवाज़ा हम को
चंद लम्हे दिए हम को
बिना देखे बदसूरत
ना कहा हम को
कुछ तो समझा हम को
निरंतर बहम में
जीने वालों से अलग
कोई मिला मुझ को
इसी मैं खुश हूँ
कोई और भी है जो
समझता 
दर्द-ऐ-दिल को
27-09-2011
1570-1401-,09-11

गुनाह से पहले कातिल ना समझो मुझ को

नज़रें चुराते हो तुम
डर से सहमते हो तुम
निरंतर
बहम से जीते हो तुम
सब को एक नज़र से
देखते हो तुम
कसूर तुम्हारा भी नहीं
कई बार भुगता तुमने
हँस के लुभाया
मुस्कान से भरमाया
लोगो ने
खंजर पीठ में भोंका
लोगो ने
मैं ना कहता तुम
ऐतबार करो मुझ पर
कम से कम निरंतर
शक ना करो मुझ पर
गुनाह से पहले
कातिल ना समझो
मुझ को
इतनी सी दया करो
मुझ पर    
27-09-2011
1569-140-,09-11

कुछ कुंठाएं जीवन भर दबी रहती


कुछ कुंठाएं
जीवन भर
दबी रहती हैं
कभी-कभी
बुल-बुले की तरह
उठती-फूटती हैं
निरंतर मन को
विचलित करती हैं
कैसे बाहर निकले?
कोई पथ दिखा दे
कौन है जो पूरी कर दे
अधूरी इच्छाएं ,
आकांक्षाएं ?
शायद कोई समझ ले
बात मन की
कुछ कुंठाएं हो जाती हैं
समाधिस्थ
मन की गहराइयों में
अर्ध-मन से जीते हुए
दबी रहती हैं
जीवन भर.....
मन के एक कोने में
तडपाने के लिए ........
27-09-2011
1568-139-,09-11