Wednesday, September 11, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे

"निरंतर" की कलम से.....: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे हसरतें परवान चढी नहीं सुकून मिलेगा कैसे मांझी के बिना किश्ती को साहिल मिलेगा कैसे मोहब्बत के ब...

"निरंतर" की कलम से.....: गले मिलो ना मिलो देख कर मुस्काराया तो करो

"निरंतर" की कलम से.....: गले मिलो ना मिलो देख कर मुस्काराया तो करो: गले मिलो ना मिलो देख कर  मुस्काराया तो करो हर छोटी बड़ी बात का फसाना मत बनाया करो नौक झोंक तो ज़िन्दगी में होती ही रहती है ...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों का घडा विचित्र बहुत है

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों का घडा विचित्र बहुत है: दुखों का घडा विचित्र बहुत है  बड़ा इतना कभी भरता नहीं है जिद्दी इतना कभी गिरता नहीं है मज़बूत इतना कभी टूटता नहीं आशा को...

"निरंतर" की कलम से.....: विरह की उदासी

"निरंतर" की कलम से.....: विरह की उदासी: ये सीना अब झूमते ह्रदय का बसेरा नहीं  इच्छाओं की समाधी है जहां सपनों की  नदी  बहती थी  कभी वहां अब मरघट की शान्ति है इन...

"निरंतर" की कलम से.....: धूप बोली चांदनी से

"निरंतर" की कलम से.....: धूप बोली चांदनी से: धूप बोली चांदनी से सदियों पुराने रिवाज़ से अब मुक्त हो जाओ तुम समझाओ चाँद को मैं समझाऊंगी सूरज को कभी मैं रात को छाऊँ कभी तु...

"निरंतर" की कलम से.....: अहम् के उन्माद में

"निरंतर" की कलम से.....: अहम् के उन्माद में: देवताओं ने भी नहीं सोचा होगा अहम् के उन्माद में मनुष्य धरती पर तांडव मचाएगा प्रक्रति के हर रंग को बदरंग कर देगा इर्ष्या द्वेष में...

"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय

"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय: अंतिम  समय निकट था पलंग पर  लाचार   पड़ा था  इतना सह चुका था इतना थक चुका था ना भावनाएं मचल  रही थीं ना जीने की इच्छा  बची थी...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों को चौराहे पर मत टांगो

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों को चौराहे पर मत टांगो: दुखों को चौराहे पर मत टांगो स्वयं को निर्बल मत दर्शाओ हर आता जाता व्यक्ति अपने सोच से गुण दोष निकालेगा कारण पूछेगा कोई सहानूभूत...

"निरंतर" की कलम से.....: समझना-समझाना

"निरंतर" की कलम से.....: समझना-समझाना: समझने समझाने पर चर्चा मैं गुरु शिष्य को समझाने लगे जो इशारों में नहीं समझे उसे कम से कम शब्दों में समझाना चाहिए जो इससे भी नहीं सम...

Saturday, September 7, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कथनी करनी में दिन रात का अंतर होता है

"निरंतर" की कलम से.....: कथनी करनी में दिन रात का अंतर होता है: सुन्दर सौम्य चेहरा बातें भी बहुत सुन्दर प्रेम व्यवहार संस्कारों की निश्छल मन सरल ह्रदय संबंधों को बनाये रखने की सहनशीलता धैर्य धीरज...

"निरंतर" की कलम से.....: सपनों को पकड़ने की चाह में

"निरंतर" की कलम से.....: सपनों को पकड़ने की चाह में: आकाश की हर दिशा में उड़ते हुए छितराए हुए सपनों को पकड़ने की चाह में निरंतर दिशा बदल बदल कर जीवन भर उछलता रहा कभी ऊँगलिया  सपनों...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी बात से चौंकना भी मत

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी बात से चौंकना भी मत: मेरी बात से चौंकना भी मत मुझ पर अविश्वास भी मत करना मैं तुमसे प्रेम तो करता हूँ पर केवल तुमसे ही नहीं आधा तुम से आधा स्वयं से प्र...

"निरंतर" की कलम से.....: केवल आप कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता

"निरंतर" की कलम से.....: केवल आप कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता: उम्र में छोटे  एक मित्र को जब आप कह कर  संबोधित किया मित्र कहने लगा कृपया आप मुझे  आप कह कर संबोधित ना करें मैं आपसे उम्...

"निरंतर" की कलम से.....: शिक्षक दिवस पर कविता-केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्...

"निरंतर" की कलम से.....: शिक्षक दिवस पर कविता-केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्...: (शिक्षक दिवस पर कविता) केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्षा स्कूल कॉलेज की चारदीवारियों में ही नहीं मिलती शिक्षा केवल शिक्षक ही नही...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं पीठ पीछे करो जितना लायक  हूँ बस उतनी ही करो मुंह पर प्रशंसा से मुझे भ्रम रहता है प्रश...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं पीठ पीछे करो जितना लायक  हूँ बस उतनी ही करो मुंह पर प्रशंसा से मुझे भ्रम रहता है प्रश...

Wednesday, September 4, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का

"निरंतर" की कलम से.....: हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का: कोई जीत स्थायी नहीं होती कोई हार सदा हार नहीं रहती हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का जीवन कर्म प्रधान होता है विवेक पथ ...

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द मात्र शब्द ही नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द मात्र शब्द ही नहीं: शब्द मात्र शब्द ही नहीं लेखकीय मन का आइना होते हैं पढने मात्र से ही मन के भाव उजागर कर देते हैं पढने वाले के मन में अनुभ...

"निरंतर" की कलम से.....: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है

"निरंतर" की कलम से.....: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है व्यक्तित्व के विपरीत अनिच्छा से  इर्ष्या द्वेष काम क्रोध लालच के संसार में भ्रमण कराता ...

Tuesday, September 3, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं:  कितना दुर्भाग्य है मुझे कोई दुःख नहीं दूसरों का दुःख समझने का अनुभव नहीं खुशी का महत्व जानने का कोई साधन नहीं किस बात...